तेरे होने और ना होने के बीच
एक जंग सी छिड़ जाती है
कभी हंसने को जी करता है
कभी दरिया बन आ जाती है
तेरे होने और ना होने के बीच
एक जंग सी छिड़ जाती है
तू हो कर भी क्यूँ नहीं
और जो तू नहीं, तो फिर क्यों है
तेरे होने और ना होने के बीच
एक जंग सी छिड़ जाती है
न जीना गंवारा तेरे बगैर
ना तेरे पास आना मुमकिन है
तेरे होने और ना होने के बीच
एक जंग सी छिड़ जाती है
तू रुठ जा या मान जा
परे हूँ तेरी अठखेलियों से
तेरे रूठने और मान जाने पे
एक जंग सी छिड़ जाती है
तेरे होने और ना होने के बीच
एक जंग सी छिड़ जाती है